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आज हम प्राणायाम के बारे में जानेंगे। कि (What is Pranayam in hindi)प्राणायाम क्या होता है। इसे करने से हमे क्या – क्या फायदा होता है। क्या हमारे शरीर के लिए प्राणायाम करना जरूरी है। इसे करते समय हमें क्या – क्या सावधानियाँ रखनी होती है।
प्राणायाम का अर्थ है, प्राणों का विस्तार करना। इसका उद्देश्य शरीर में व्याप्त प्राण शक्ति को उत्प्रेरित, संचारित,नियंत्रित और संतुलित करना है। हमारे शरीर कि शुद्धि दो प्रकार से होती है- बाहरी और आंतरिक शुध्दि। जिस तरह हम अपने शरीर कि बाहरी शुद्धि के लिए स्नान करते है। उसी तरह आंतरिक शुद्धि के लिए प्राणायाम जरूरी है। श्वास की गति को नियंत्रित करना प्राणायाम कहलाता है।
प्राणायाम के प्रकार (Types of Pranayam)
प्राणायाम योग क्रिया की चौथी पीढ़ी है। इसे श्वासो का व्यायाम भी कहा जाता है। प्राणायाम एक व्यापक व अति महत्वपूर्ण विषय है। प्राण तथा अपानवायु के मिलने को प्राणायाम कहा जाता है। हमारी रीढ़ के बीच में सुषुम्ना नाड़ी स्थित है।
जब प्राणायाम द्वारा सुषुम्ना में प्राण तथा अपान वायु का टकराव होता है। तो कुंडलिनी जागृत होती है। जो रीढ़ के मूल में स्थित होती है। जब यही कुंडली शक्ति जागृत करती है तो सुषुम्ना में प्रवेश कर षट्चक्रों को भेदकर सहस्तार में पहुंचती है, तो मनुष्य की शक्तिया अपरिमित होती है। इसे ही प्राणायाम का विज्ञानं कहा जाता है।
प्राणायाम के प्रकार है-
पूरक
रेचक
कुंभक
- पूरक
योग शास्त्र की शब्दवाली के अनुसार श्वास को को खींचना पूरक कहलाता है।
- रेचक
योग शास्त्र की शब्दवाली के अनुसार श्वास को बहार निकालना रेचक कहलाता है।
- कुंभक
योग शास्त्र की शब्दवाली के अनुसार श्वास को कुछ सेकंड अंदर रोक कर रखना कुंभक कहलाता है।
यह एक ऐसी क्रिया है जो करने में आसान लगती है। किन्तु बड़ी रहस्य और गुड है। और इसमें असीम शक्ति निहित है। किसी योग व अनुभवी गुरु के सान्निध्य में इसे सीखकर अपनी शारीरिक व आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग हासिल कर सकते है।
ये भी जानें –
पंच प्राण
जड़ता, आलस्य, शारीरिक दुर्बलता आदि बीमारिया कुछ खास प्रकार के प्राणायाम करने से दूर हो जाती है। और उनसे इंद्रियों तथा नाड़ी चक्रों को वश में करने और मन को एकाग्र करने में सहायता मिलती है। प्राण को पांच भागों में विभाजित किया गया है-
- प्राण वायु
- अपान वायु
- समान वायु
- उदान वायु
- व्यान वायु
- प्राण वायु
इस प्राण शक्ति द्वारा साँस को नीचे खींचने में सहायता मिलती है। ह्दय से लेकर नाभि तक, शरीर के ऊपरी भाग में यह वर्तमान रहता है। ऊपर की इंद्रियों का काम प्राण वायु के अधीन होता है।
- अपान वायु
यह शक्ति मूलाधार चक्र के पास होती है। यह मल – मूत्र के निष्कासन में सहायता प्रदान करती है। तथा बड़ी आंत को बल प्रदान करती है।
निचली इंद्रियों का तथा कमर, घुटना, जांघ आदि का काम इसी के अधीन होता है।
निचली इंद्रियों का तथा कमर, घुटना, जांघ आदि का काम इसी के अधीन होता है।
- समान वायु
यह वायु नाभि से ह्दय तक होती है। यह शक्ति पाचन संस्थान तथा उनसे निकलने वाले रसों को निंयत्रित करती है।
- उदान वायु
यह वायु कंठ से मस्तिक तक होती है। इस शक्ति द्वारा आंख, नाक, कान और मस्तिक आदि को निंयत्रित किया जाता है। सारी स्थूल व सूक्षम नाड़ियों में गति करता हुआ यह सब अंगों में रक्त संचरण का कार्य करता है।
- व्यान वायु
यह वायु पूरे शरीर में विद्यमान होती है। यह स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होती है। शरीर को उठाए रखना इसका कार्य है। इसी के द्वारा मृत्यु के समय सूक्षम शरीर स्थूल शरीर से बहार निकलता है। इसी उदान वायु द्वारा योगी जन शरीर स्थानांतरण तथा विदेह होकर लोकान्तरों में भ्रमण करते है।
इनके अलावा पांच वायु ये भी है-
1. | नाग वायु | छींक आना, डकार आना |
2. | कूर्म वायु | पाप, संकोचनीय वायु |
3. | कृकर वायु | क्षुधा, तृष्णा |
4. | धनज्जय वायु | पोषणादि |
5. | देवदत्त वायु | निद्रा, तंद्र, जम्हाई |
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