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यदि बच्चे का गर्भाधारण का काल पूरा हो गया है। किन्तु बच्चा अभी – भी कम वजन का है। तो इसका अर्थ है। कि बच्चे का गर्भ के अंदर ही पूर्ण विकास नहीं हुआ है। तो ऐसे बच्चों की देखभाल पर पूरा ध्यान देना चाहिए। ताकि बच्चे में पूरा वजन हो । और समय के साथ – साथ सही तरीके से उसका विकास हो सके। आइये समझते है, कि कैसे करें ऐसे बच्चों कि देखभाल।How to care of a low-weight newborn baby read continue..
गर्भ से ही कम वजन लेकर पैदा हुए। कुपोषित बच्चों कि स्थिति को आई. यू. जी. आर. या इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रिटारडेशन भी कहते है। हमारे देश की यह प्रमुख समस्या है। नवजात शिशु का वजन इसलिए कम रह जाता है। क्योंकि माता का गर्भ – काल में पूर्ण पोषण नहीं हो पाता है। जिसका सीधा असर बच्चे पर पड़ता है। हमारे देश में 100 में से 30 बच्चे कम वजन के पैदा होते है। इन बच्चों में कुछ विशेष परेशानियाँ होती है। जिसका बाद में विशेष ख्याल रखना पड़ता है। सामान्य बच्चों की तुलना में इनकी मृत्युदर स्वाभाविक ही अधिक होती है।
कैसे करें ऐसे बच्चों कि देखभाल(How to take care of such children)
- माँ को पूरे नौ महीने तक आयरन की गोलियां लेनी चाहिए।
- बच्चे की माँ के शरीर में खून की कमी नहीं होनी चाहिए।
- गर्भावस्था के समय माँ को केल्सियम, आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां जरूर लेनी चाहिए।
- फॉलिक एसिड की गोली से बच्चे का स्नायुतंत्र मजबूत होता है।
- माँ के खानपान और रहने का स्थान का उचित ध्यान रखना चाहिए।
- किशोरी बालिकाओं को भी तीन महीने तक आयरन की गोलियां देनी चाहिए।
- गर्भावस्था के समय क्षमता से अधिक काम न करें।
- गर्भावस्था के समय पानी अधिक पिए और उचित आराम करें।
- बच्चे की माँ को गर्भावस्था के समय सक्रामक रोग नहीं होना चाहिए।
- क्योंकि इसका सीधा असर बच्चे पर पड़ता है।
- पेशाब की जांच से संक्रमण व अन्य रोगों का पता लगाएं।
- गर्भकाल के समय माँ का वजन 10 से 12 किलो अधिक बढ़ जाना। बच्चे के लिए अच्छा माना जाता है।
ठंड से बचाएं इन्हें(care of a low-weight newborn baby)
ठंड से बचने के जो शारीरिक संसाधन सामान्य बच्चों के शरीर में विकसित होते है। वे इन बच्चों में नहीं हो पाते है। यही वजह है। कि ठंड लगने की वजह से कई दुष्परिणाम इन बच्चों में देखने को मिलते है। यहां तक की ठंड के कारण इन बच्चों की मृत्यु भी हो जाती है। इन बच्चों में रोग – प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। अतः दस्त, श्वसन के रोग, और कई अन्य बीमारियां इनको जल्दी पकड़ लेती है। इनका शारीरिक विकास भी अन्य बच्चों की तुलना कम और देर से होता है। चूकि इनकी शारीरिक बढ़ता माँ के गर्भ में ही कम हो चुकीं होती है। How to care of a low-weight newborn baby.
अतः जन्म के बाद विशेष पोषण भी इनके शारीरिक विकास में कुछ फायदा नहीं करता है। न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक विकास में भी ऐसे बच्चे पिछड़ जाते है। आपसी सामंजस्य और भाषा का विकास इनमे धीमा होता है। कुल मिलाकर इनका बौद्धिक स्तर सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है।
कमजोर बच्चों का भविष्य अंधकार में है(The future of weak children is in the dark)
हमारे देश में 30 % बच्चे जन्म से ही कम वजन के होते है। जिनका शारीरिक और मानसिक विकास कम भी कम होता है। ऐसी स्थिति में देश किस तरह विकसित होगा। ये बच्चे बार – बार बीमार पड़ते है। और वयस्क होकर भी सामाजिक और आर्थिक विकास में सहयोग के लायक नहीं बन पाते है। ये बच्चे युवा होकर भी सामान्य युवाओं की तुलना में डायबिटीज व ह्दय रोग के शिकार हो जाते है। इस तरह से कम वजन के शिशु कुछ महा की परेशानी नहीं है। बल्कि इसके लम्बे समय तक दुष्परिणाम है। बच्चों के वजन का कम होने के दो कारण हो सकते है। पहला जेनेटिक या अनुवांशिक। और दूसरा माता को गर्भकाल में पूर्ण पोषण न मिल पाना।
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